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Article Name : | | प्राच्यविद्या: धर्म षिक्षा की महत्ता | Author Name : | | डाॅ. (श्रीमती) ज्योति शर्मा | Publisher : | | Ashok Yakkaldevi | Article Series No. : | | ROR-15483 | Article : | | | Author Profile | Abstract : | | समाज के विकास का आधारभूत तत्त्व शिक्षा है। शिक्षा के पर्यायवाची रूप मे विद्या तथा ज्ञान शब्दों का प्रयोग भी किया जाता है। विद्या शब्द की निष्पत्ति “विद्“ धातु से हुई है, जिसका अर्थ है, जानना। आधुनिक वि़द्या का आधार प्राच्यविद्या ही है। प्राचीन वैदिक, साहित्य, दर्शन, कला, भारतीय धर्म का अध्यापन पुराण, उपनिषद् योग, आयुर्वेद, पाणिनीय व्याकरण, भारतीय दार्शनिक साहित्य, बौद्व तथा जैन दर्शन आदि प्राव्यविद्या में समाहित हंै। इनका अर्थ संकुचित न होकर व्यापक है। | Keywords : | | - प्राच्यविद्या,प्राच्यविद्या,
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