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Article Name : | | बकुलभूषण विरचित –बलिविजयम में हास्यरस | Author Name : | | कलाबेन डी. पटेल | Publisher : | | Ashok Yakkaldevi | Article Series No. : | | ROR-930 | Article : | | | Author Profile | Abstract : | | मम्मट ने कविसृष्टि को ब्रह्मा की सृष्टि से अधिक स्वतंत्र और आहलादमयी माना है| नियतिकृतनियमरहितां हलादैकमयीमनन्यपरतन्त्राम | नवरसरुचिरां निर्मितिमादधती भारती कवेर्जयति || काव्य के प्रयोजन में भी सद्य : परनिवृत्ति भी आनंद सुचन करता है| छांदोगय उपनिषद में परब्रम्ह को रसो वै स: से रसमय और आनंदमय माना है| आचार्य भरत ने रससुत्र देकर कहा है कि, विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगतद्रसनिष्पति: अर्थात रस की निष्पति विभाव- अनुभाव और व्यभिचारी भावों के संयोग द्वारा स्थायीभाव भी रस का स्वरूप धारण करता है| | Keywords : | | - कविसृष्टि
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