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Article Details ::
Article Name :
अम्बेडकर चिंतन में नारी के संघर्श का इतिहास
Author Name :
Reeta Kumari Sharma
Publisher :
Ashok Yakkaldevi
Article Series No. :
ROR-1833
Article :
Author Profile
Abstract :
सांस्कृतिक और वैचारिक मतभेदों के बावजूद यह तथ्य हैं कि आज भी नारी के प्रति समाज का दृश्टिकोण समानता पर आधारित नही है। इसके स्पश्ट उदाहरण अविकसित और जनजातीय क्षेत्रों में देखे जा सकते है। नारीवाद नारी के प्रति अत्याचार के विरोध स्वरूप उभरा हुआ आन्दोलन है। ‘‘नारियों का स्वयं को पहचानना या अपनी अस्मिता के लिए संघर्श करना इसके लिए सामाजिक या सांस्कृतिक स्तर पर पुरूशों के द्वारा उठाये जाने वाले प्रष्नों को खारिज करने के लिए उन्हें उलट देना तथा उन प्रश्नो की जगह दुनिया के सामने अपने प्रश्ना खडे कर देना ही नारीवाद है।‘‘1 नारीवाद का सबसे साकारात्मक प़क्ष यह है कि वह नारी की मुक्ति का प्रष्न परिवार में नारी-पुरूष के सम्बंध के स्तर से उठाता है और वही से समाज और राज्य तक जो पितृसत्ता हावी है उसके उन्मूलन की मांग तक ले जाता है। पितृसत्ता जब नारियों को पुरूषो के अधीन रखने के लिए तमाम तरह के बन्धनों में जकड देने का नाम है तो नारीवाद उन बन्धनों से मुक्त होने के लिए विद्रोह करने और नारी पुरूश की समानता के लिए प्रयास करने का नाम है। यह नारी की विशिष्ट पहचान पर भी बल देता है।
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