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Article Name : | | ''नागाजुर्न के काव्य में व्यंग्य'' | Author Name : | | बेवले ए. जे. | Publisher : | | Ashok Yakkaldevi | Article Series No. : | | ROR-1749 | Article : | | | Author Profile | Abstract : | | कबीर और निराला के बाद हिंदी काव्य साहित्य में व्यंग्यकार के रूप में नागाजुर्नजी का नाम आता है। उनका व्यंग्य चुभता हुआ और धारदार तो है ही साथ ही उनकी पैनी नजर से कोई वर्ग बचा नहीं है। यथार्थ जीवन को चित्रित करने वाले वे जनवादी कवि है। मार्मिक व्यंग्यपुर्ण कविता के कारण ही उन्हें प्रगतिशील कविता का सबसे अधिक सफल व्यंग्य कवि कहा जाता है। वास्तव में नागाजुर्न का व्यंग्य -बिल्कुल साफ और खुला है और उनके व्यंग्य में न तो कोई परदा है और न तो कोई खोट, उसमें है तो पैनापन विनोदी वृत्ति, करूणा और वक्र कथन का प्रभावी रूप । उनकी व्यंग्यपूर्ण कविता को पढकर स्पष्ट होता है कि उनका व्यंग्य सच्चे जनवादी और जलहितैषी कवि का व्यंग्य है। उनकी व्यंग्य कविताओं में कबीर की तल्खी, भारतेंदु की करूणा और निराला की विनोदवक्ता का विलक्षण सामंजस्य है। अपने फक्कड स्वभाव और घुमंतू वृत्ति ने उन्हें बेफिक्र और बेबाक बना दिया था। देश की समस्याओं से जुझने की अद्भूत “शक्ति भी उनमें थी। जनसाधारण से लेकर बडे-बडे राजनेता उनके अचूक व्यंग्य बाणों से बच नहीं सके है। नागाजुर्न की कलम तमाम विसंगतियों पर अचूक प्रहार करती है। | Keywords : | | - व्यंग्य कविता
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