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Article Name : | | औपन्यासिक सृष्टि में विरचित पूंजीवाद, साम्राज्यवाद व उपनिवेशवादा की त्रिवेणी का कड़वा सच: बाज़रावाद। | Author Name : | | किरण ग्राेवर | Publisher : | | Ashok Yakkaldevi | Article Series No. : | | ROR-1676 | Article : | | | Author Profile | Abstract : | | भारत के इतिहास की प्रमुख घटना है,उपनिवेशवाद। उपनिवेशवाद बहुधा साम्राज्यवाद एवम् दूरस्थ क्षेत्रों में उपनिवेश कायम करने का परिणाम है। भूमण्डलीकरण पूंजीवादी व्यवस्था का अत्यन्त आधुनिक व विस्तृत रूप है। इस व्यवस्था की नीतियां सिर्फ आर्थिक क्षेत्र में सामित नहीं है अपितु सामाजिक व सांस्कृतिक क्षेत्र पर भी अपना प्रभाव डाल रही है। भूमण्डलीकरण प्रक्रिया का अनिवार्य व अभिन्न हिस्सा है: मुक्त व्यापार व्यवस्था। बाज़रावाद के मूल में पूंजीवादी, साम्राज्यवादियों, उपनिवेशवादियों की संगठित साजि़श है यानी बाज़रावाद पूंजीवाद का ही फलितार्थ है। साहित्यकार का धर्म जीवन के विविध पक्षों के यथार्थ को मानवीयता के धरातल पर आंकना है। आज भारत के सामने राष्ट्रीय संस्कृति का संकट मंडरा रहा है। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और भूमण्डलीकरण की संस्कृति भारत की राष्ट्रीय संस्कृति पर कुठाराघात कर रही है। वैशवीकरण, औद्योगीकरण व उदारीकरण ने उपभोक्तावादी संस्कृति को जन्म दिया। इस स्थिति को देखकर आभास होता है कि पूंजीवाद, साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद की त्रिवेणी ने हमें जाल में फंसा दिया है। साहित्यकार भवि’य का द्रष्ट्रा होता है और यह भविष्य कल का यथार्थ है। | Keywords : | | - त्रिवेणी
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